सप्लाई इंस्पेक्टर की कुर्सियां खाली, दीवारों पर लटका जनसुनवाई का बोर्ड
सप्लाई इंस्पेक्टर की कुर्सियां खाली, दीवारों पर लटका जनसुनवाई का बोर्ड
सकलडीहा (चंदौली)। विकसित भारत के दावे उस वक्त बौने साबित हो जाते हैं जब सरकारी कार्यालयों में जिम्मेदार अधिकारी ही नदारद हों। सकलडीहा तहसील के उपजिलाधिकारी कार्यालय के ऊपर स्थित रसद विभाग का कार्यालय इसका ताजा उदाहरण है। यहां दीवारों पर साफ लिखा है कि सुबह 10 से दोपहर 1 बजे तक जनसुनवाई होगी, लेकिन सवाल यह है कि सुनवाई करेगा कौन? तीन ब्लॉकों से जुड़े सप्लाई इंस्पेक्टर सोमवार को नदारद मिले।
स्थिति यह है कि तहसील दिवस में पहुंचे प्रभारी जिला सप्लाई इंस्पेक्टर ने मामले को टालते हुए कहा कि "अगले हफ्ते मिलकर काम कर लीजिए", साथ ही धानापुर सप्लाई इंस्पेक्टर को निर्देशित करने की बात कही। वहीं महिला सप्लाई इंस्पेक्टर विभागीय नंबर तक साझा करने से बचती हैं। इस बीच विभागीय अधिकारियों की खाली कुर्सियां उनकी कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं।
ग्रामीणों का आरोप है कि कार्यालय में स्थानीय दलालों का बोलबाला है, जो आम लोगों से पैसा वसूलकर कार्य करवाते हैं। मनोज यादव, शिवम दूबे, अनीता कुमारी और अनूप तिवारी सहित कई लोगों का कहना है कि राशन कार्ड से जुड़ा हर काम—चाहे नया कार्ड बनवाना हो, यूनिट जोड़नी हो या कटवानी—दलालों के जरिए ही संभव है।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि उपजिलाधिकारी तक को यह जानकारी नहीं रहती कि संबंधित अधिकारी मौजूद हैं या नहीं। सवाल यह उठता है कि क्या विकसित भारत की परिकल्पना सिर्फ दलाली और फाइलों तक सीमित रह जाएगी, या फिर आम आदमी की समस्याओं का समाधान भी होगा?
आमजन का सीधा सवाल है कि जब कुर्सियां खाली रहेंगी तो जनसुनवाई आखिर किसके भरोसे होगी—खाली दीवारों पर लिखे बोर्ड के या फिर जिम्मेदार अधिकारियों के?
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