"मिर्जापुर का अंधियारा: ड्रग्स के जाल, पुलिस की लापरवाही और सांसद का उबलता गुस्सा"क्या सांसद विंध्य के अंधेर नगरी —अंधे में कनवा राजा है, जनता के मुंह से निकला सवाल—
जिला ब्यूरो चीफ / अंजनी मिश्र (शुभम् पण्डित)
संपर्क सूत्र--9170204024
मिर्जापुर | जिले की सड़कों पर आज एक बार फिर से सत्ता और जनता के बीच का वह दरार दिखाई दिया, जो अक्सर हादसों के बाद उभरता है। विंध्याचल की एक घटना ने जिले की सुरक्षा व्यवस्था और पुलिस प्रशासन की पोल खोल कर रख दी। मामला था एक पार्टी कार्यकर्ता की पिटाई का, जिसे लेकर केंद्रीय राज्य मंत्री और अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल खुद जिला अस्पताल पहुंचीं। वहां का नजारा देखकर उनका गुस्सा उफान पर आ गया। मीडिया के कैमरों के सामने उन्होंने एडिशनल एसपी को लताड़ा और खुलेआम पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए।
"खामोश पुलिस और घायल कार्यकर्ता: FIR की अनसुनी गुहार"
कहावत है, "जब सांप निकल जाए तो लाठी पीटने से क्या फायदा।" पर यहां हालात ऐसे हैं कि सांप तो दूर, उसे पकड़ने वाले भी नहीं दिखते। घटना की शुरुआत तब हुई जब कार्यकर्ता के घर में शराबियों ने घुसपैठ की। वे न केवल उत्पात मचाने लगे बल्कि एक नाबालिग बच्ची को जबरन उठाकर ले जाने की कोशिश की। विरोध करने पर कार्यकर्ता के पिता को लोहे की रॉड से इतना पीटा गया कि उनका सिर फट गया और हाथ-पैर तक तोड़ दिए गए। यह सब होने के बावजूद पुलिस की तरफ से न तो कोई समय पर सहायता मिली, न ही प्राथमिकी दर्ज की गई।
"सांसद का धैर्य टूटा, प्रशासन को दी खुली चेतावनी"
जब मंत्री अनुप्रिया पटेल को घटना की खबर मिली, तो वे तुरंत अस्पताल पहुंचीं। वहां उन्होंने पुलिस को जमकर फटकार लगाई और एडिशनल एसपी से सख्त लहजे में कहा, "आपको ड्रग्स बेचने से ही फुर्सत नहीं, तो फिर क्या करेंगे?" यह बयान न केवल मिर्जापुर की जमीनी हकीकत को दर्शाता है, बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे पर गंभीर आरोप भी लगाता है। उन्होंने पुलिस को अल्टीमेटम देते हुए कहा कि दो घंटे के भीतर FIR दर्ज की जाए, वरना मामला मुख्यमंत्री के पास जाएगा।
"मिर्जापुर: ड्रग्स का बढ़ता कारोबार और आम जनता की चिंता"
यह घटना एक बड़े खतरे की ओर इशारा करती है—वह खतरा जो मिर्जापुर में नशे के बढ़ते कारोबार से जुड़ा हुआ है। अनुप्रिया पटेल के शब्दों में, "विंध्याचल ड्रग्स का गढ़ बन गया है।" यह इलाका कई बार अखबारों और रिपोर्टों में नशे के अड्डे के रूप में सामने आया है। सवाल उठता है कि जब एक केंद्रीय मंत्री को अपने कार्यकर्ता की सुरक्षा के लिए खुद अस्पताल जाना पड़े, तो आम जनता का क्या हाल होगा? क्या वे भी ऐसी ही तत्परता की उम्मीद कर सकते हैं, या फिर यह सिर्फ राजनीतिक रस्म अदायगी बनकर रह जाएगी?
"आम जनता और उनके प्रतिनिधि: कहीं उम्मीदें खो न जाएं"
जनता का दर्द और उसकी उम्मीदें अक्सर बड़े-बड़े वादों में दबकर रह जाती हैं। एक कार्यकर्ता की मदद के लिए सांसद का यह कदम सराहनीय है, लेकिन आम जनता के लिए यही तत्परता कम ही देखने को मिलती है। कहावत है, "अंधों में काना राजा," पर यहां सवाल है कि इस 'राजा' की नजर कब आम जनता की तकलीफों पर पड़ेगी?
इस घटना ने एक बार फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं कि मिर्जापुर की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था का जिम्मा आखिर किसके हाथों में सुरक्षित है। अब देखना होगा कि क्या यह मामला सचमुच कार्रवाई का रूप लेता है, या फिर यह भी अन्य घटनाओं की तरह सिर्फ सुर्खियों में रह जाएगा।
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