उत्तर प्रदेश में पुलिस कंप्लेंट अथारिटी क्यों नहीं ?


अरूण दुबे की रिपोर्ट 

उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थित को लेकर हमेशा सवाल उठाते रहते हैं पुलिस पर लगातार आरोप एवं हिरासत में मौतों पर भी सवाल उठता रहता है। मृतक के परिजन न्याय पाने के लिए थकहार का निराश होकर बैठ जाते हैं लेकिन पुलिस द्वारा किये गये कृत्यों के आधार पर गुण दोष सिद्ध नहीं हो पाता है आखिर क्यों ? पुलिस अपने कर्तव्यों का पालन करने में सफल हो रही है और अक्सर मानवाधिकार का उल्लंघन किया करती है। पुलिस किसी की जिंदगी बर्बाद करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती है यहां तक पुलिस पूछताछ के लिए व्यक्तियों को थाने ले आती है और पूछताछ के नाम पर कई दिनों तक थाने के लाकप बैठे रहती है तब पूछताछ के लिए लाये गये व्यक्तियों के परिजनों से भारी भरकम रकमों की मांग करते हैं। जो परिजन पैसे देने में सक्षम होते हैं पुलिस वाले पैसे लेकर उनको छोड़ देते हैं जिनके परिजन पुलिस द्वारा मांगे गये पैसे देने में असमर्थता जाहिर करते हैं उन व्यक्तियों के विरुद्ध एक मुकदमा नहीं कई मुकदमों में सह अभियुक्त बना देते हैं जबकि उसके पूर्व उस व्यक्ति का अपराधिक इतिहास नहीं रहता। पुलिस के द्वारा किये गये इन कृत्यों से अपराध जगत का बढ़ावा मिल रहा है पुलिस अपनी मनमानी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार करती है। किसी स्थान से और दिखाती है किसी स्थान पर आखिर ऐसा क्यों करती हैं ? यहां तक देखा गया है कि गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के पास जामा तलाशी लेते वक्त कुछ भी नहीं रहता लेकिन पुलिस अपने लिखित फर्द में कई वस्तुओं की बरामदगी दिखा देती हैं। आखिर आरोपियों की तलाशी करते वक्त वीडियो बनाने का प्राविधान क्यों नहीं ? इन सब समस्याओं का समाधान करने के लिए पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी की स्थापना किया जाना नितांत आवश्यक है। जो पुलिस के खिलाफ शिकायतों की स्वतंत्रता और निष्पक्ष जांच कर सके लेकिन अफसोस की बात यह है कि अब तक उत्तर प्रदेश में इस अथॉरिटी का गठन नहीं हो पाया है। पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी का विचार पहली बार 2006 में माननीय उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार के मामले में आया था। इस मामले में न्यायालय ने पुलिस सुधारो के लिए कई दिशा निर्देश दिए थे। जिनमें एक था कि हर राज्यों में एक स्वतंत्र पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी का गठन किया जाय। इसका उद्देश्य था कि पुलिस की बर्बरता, भ्रष्टाचार और कदाचार के मामलों की जांच की जा सके। यह अथॉरिटी पुलिस कर्मचारी अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की सुनवाई कर उन्हें जवाबदेही ठहराने का एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करके शिकायतकर्ताओं के समस्या का निस्तारण किया जा सकता है। इससे पुलिस द्वारा किए जा रहे लोगों को अनावश्यक परेशान होने से बचाया जा सकता है। जहां कई राज्यों में पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी की स्थापना कर दी है वही उत्तर प्रदेश इस दिशा में अभी तक पीछे है,राज्य में पुलिस सुधारो की बात तो होती है लेकिन उन्हें लागू करने की इच्छा शक्ति का अभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है यहां तक कई सिविल सोसाइटी, संस्थान लंबे समय से पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी की स्थापना की मांग कर रहे हैं। लेकिन इन सबकी आवाजें अनसुनी करके रह जाते हैं पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी की स्थापना करने में राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव दिखाई दे रहा है। उत्तर प्रदेश में पुलिस का राजनीतिक इस्तेमाल कोई नई बात नहीं है अक्सर देखा जाता है कि पुलिस को सत्ताधारी दल अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं। पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति,तबादला और प्रमोशन तक में राजनीतिक दबाव देखा जाता है। पुलिस अधिकारियों को भी यह डर सताता है कि एक स्वतंत्र निकाय के आने से उनके ऊपर निगरानी बढ़ेगी और उन्हें अपने कार्यो के लिए जवाबदेह ठहराया जायेगा। इसलिए अधिकारियों और सत्ताधारी दल के बीच एक मौन समझौता बन जाता है कि इस तरह के सुधारो को लागू न किया जाय। यह शायद एक प्रमुख कारण है कि सरकारें इस अथॉरिटी की स्थापना करने से कतराती है। जब पुलिस अपनी मर्जी से काम करती है और उसके खिलाफ शिकायत दर्ज करने का कोई प्रभावी तंत्र नहीं होता आम नागरिकों के अधिकारों का हनन होता है। कई बार देखा गया है कि निर्दोष लोगों को फर्जी मामले में फसाया जाता है हिरासत में मौतें होती हैं और मुठभेड़ों में संदिग्ध हालात पैदा होते हैं। ऐसे मामलों में पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी का गठन होना अत्यंत आवश्यक है ताकि जांच निष्पक्ष हो सके और दोषी कर्मचारियों अधिकारियों को सजा मिल सके तब जाकर पुलिस के कार्यशैली में सुधार हो सकता है और आमजन अमन चैन से रह सकता है। उत्तर प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए राज्य में पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी का गठन करें यह कदम न केवल कानून के शासन को मजबूत करेगा बल्कि जनता की पुलिस पर भरोसे को भी बढ़ाएगा। इसके साथ ही पुलिस अधिकारियों का एहसास होगा और वह जनता के प्रति अपनी जवाबदेही समझेंगे।

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